रविवार, 11 जनवरी 2009

समाज और बाजार

नए वर्ष पर विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय लोगो के लोकप्रियता जानने के लिए मीडिया द्वारा कई प्रतियोगिताएं का आयोजन किया गया । हिंदुस्तान दैनिक ने इसी तरह के एक प्रातियोगिता में चुने गए लोगों की एक सूची प्रकाशित की । सूची देखर आश्चर्य हुआ । साहित्य जगत की श्रेणी में ऐसे लोगों का चयन किया गया जो परपरागत अर्थों में साहित्यकार कहे ही नही जा सकते । शायद आपने भी उस सूची को देखा हो । सूची देखकर लगता था कि साहित्यकारों का चुनाव भी समाज के बजाय बाज़ार की ताकतें कर रही हैं । यानी अब यहाँ नहीं महत्वपूर्ण रहा गया है की आमलोगों की भाषा में आम लोगों की समस्याएं उठाई जायें । जरुरी यहाँ है की आप साहित्यकार के नाते अभिजन वर्ग को रास आने वाली चीजें परोस सकने की चमता रखते हैं अथवा नहीं । अच्छे साहित्यकार होने का एक मतलब यह भी है की आप बाज़ार को चला रहे हों अथवा बाजारू आइकन हो । हिन्दुस्तान दैनिक द्वारा चुने गए साहित्यकारों में अरविन्द अडिग और नंदन नीलकेनी का चुना जन यही इंगित करता है कि बाज़ार साहित्य और समाज दोनों पर भरी पण रहा है । मीडिया द्वारा ऐसे बाजारू साहित्यकारों को साहित्य जगत का पुरोधा बताना दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा ।