रविवार, 19 अप्रैल 2009

आजकिसी को ......

आज किसी को नजर आती नहीं कोई दिवार
घर की हर दीवाल पर चिपके हैं इतने इस्तहार
आप बचकर चल सके ऐसी कोई सूरत नही
रहगुजर घेरे हुए खणे हैं बेसुमार

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

बुलबुल ने गाना छोड़ दिया

आतंरिक सुरक्षा के डर से , बुलबुल ने गाना छोड़ दिया
गोरी ने पनघट पर जाकर , गागर छलकाना छोड़ दिया
अब कौन संभालेगा घर की , इन गिरती हुई दीवारों को
लगता है आने वाला है,मौसम फिर से अंगारों का

अब रस का रास कहाँ होता , है नाटक नित तलवारों का
फूलों की आँखों में आंसू , उतरा है रंग बहारों का
लगता है आने वाला है , मौसम फिर से अंगारों का

काँटों के झूठे बहुमत से , हर सच्ची खुसबू हार गई
जो नही पराजित हुए ,उन्हें मलिन की चितवन मर गई
हो गया जवानी में बूढा , सब यौवन मेघ मल्हारों का
लगता है आने वाला है ,मौसम फिर से अंगारों का