रविवार, 6 दिसंबर 2015

भाषायी सेतुबंध ही सच्ची श्रद्धांजलि

श्रीकांत जी ने हिंदुस्थान समाचार के जरिए जिन कुछ स्वप्रों को साकार करना चाहा था, उनमें से एक भारतीय भाषाओं के बीच सेतुबंध का निर्माण करना भी था। हिंदुस्थान समाचार का मुख्य लक्ष्य सूचना-प्रवाह का भारतीयकरण करना रहा है। इस काम को खबरों के चयन और प्रस्तुतिकरण के जरिए तो किया ही जाना था। विविध भारतीय भाषाओं को  समाचार संप्रेषण का हिस्सा बनाना और सभी भाषाओं को  एक 'कॉमन प्लेटफार्मÓ पर लाना भी इसी काम का एक अहम हिस्सा था। सौभाग्य से धीरे-धीरे ही सही हिंदुस्थान समाचार, इन दोनों कार्यों का कर रहा है।
श्रीकांत जी इस बात को लेकर आश्वस्त हो चुके थे कि अपनी समृद्ध विरासत के कारण भारतीय परिप्रेक्ष्य में खबरों के चयन और प्रस्तुतिकरण का काम हिंदुस्थान समाचार कर ही लेगा। आपातकाल के पूर्व इस संस्थान ने बहुत पेशेवर ढंग से इस भूमिका को निभाया था। उस समय इसकी विश्वसनीयता मात्र तथ्यपूर्ण खबरों और तेजतर्रार सेवा के कारण ही नहीं थी, बल्कि यह  जमीनी और राष्ट्रहित को प्रभावित करने वाली खबरों और दृष्टिकोणों को सामने लाने के लिए भी थी, जो प्राय: दृष्टिदोष से पीडि़त होने  कारण अन्य माध्यमों से छूट जाती थी। उस समय हिंदुस्थान समाचार ने संचार की दुनिया में कुछ नए समाचार मूल्यों की स्थापना की थी। राष्ट्रहित को केंद्रीय तत्व बनाना और दूरदराज की खबरों को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में रखने जैसे मूल्यों की स्थापना हिंदुस्थान समाचार ने ही की थी।
चूंकि खबरों के चयन और प्रस्तुतिकरण को लेकर हिंदुस्थान समाचार ने कई प्रयोग कर लिए थे, उन प्रयोगों के जरिए एक शब्दावली और शैली गढ़ी जा चुकी थी, नेटवर्किंग के तरीके खोजे जा चुके थेे और देश की खबरों के लिए अच्छे सोर्स कौन हो सकते है, उनकी पहचान एक बार पूर्व में हो चुकी , इसीलिए श्रीकांत जी आश्वस्त थे कि हिंदुस्थान समाचार देर-सबेर भारतीय नजरिए से खबरों के प्रस्तुतिकरण का सशक्त संस्थान बन ही जाएगा।
उनकी चिंता और कार्य का क्षेत्र दूसरा था। वह भारतीय भाषाओं में समाचार संप्रेषण की गति और स्तर को बढ़ाने के लिए अधिक प्रयास कर रहे थे। अपनी पहली पारी में हिंदुस्थान समाचार ने भारतीय भाषाओं को लेकर अधिक प्रयोग नहीं किए थे। इसलिए दूसरी पारी में भी उसके लिए यह एकदम नया विषय था। सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में खबरों का तंत्र खड़ा करना, उन्हें एक प्लेटफार्म पर लाना और उनमें से महत्त्वपूर्ण खबरों का राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में विवेचन  करना एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य था।
चुनौतियां कई स्तरों पर थी। ऐसे मानव संसाधन की खोज, जो स्थानीय खबरों को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य मे समझ सके- समझा सके, की पहचान करना पहली चुनौती थी। राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय सूचना प्रवाह की समझ रखने वाले लोग स्थानीय भाषाओं से अनभिज्ञ थे, और भाषा की अच्छी जानकारी रखने वाले लोग, खबरों के ककहरे से अपरिचित थे। इसलिए यह एक बड़ी चुनौती थी। यह काम धैर्य से हो सकता था और श्रीकांत जी अपने अंतिम समय तक इस काम को धैयपूर्वक करते रहे। उनके इन प्रयासों का फल अब धीरे धीरे सामने आने लगा है। एक ही वेब प्लेटफार्म पर चौदह से अधिक भाषाओं की खबरों को स्थान देना एक बड़ी तकनीकी समस्या थी। इस समस्या का समाधान भी उनके रहते खोजा जा चुका था।
चुनौती प्रशासनिक स्तर पर भी कम नहीं थी। भाषायी पत्रकारिता को स्थानीय संसाधनों के जरिए ही खड़ा किया जा सकता है। राष्ट्रीय स्तर की केंद्रीकृत व्यवस्था और संसाधनों के निवेश के बल पर भाषायी पत्रकारिता को न तो अपने पैरों पर खड़ा किया जा सकता है और न ही आत्मविश्वास भरा जा सकता है। जबकि दूसरी ओर केंद्रीकृत व्यवस्था के अभाव में सब कुछ बिखरेने का और स्थानीय स्तर पर मनमानी व्यवहार का खतरा रहता है।
श्रीकांत जी ने बड़े सूझ-बूझ से एक ऐसा संतुलित प्रशासनिक ढांचा खड़ा किया, जो केंद्रीकृत होते हुए स्थानीय स्तर पर कई मसलों में स्वायत्तशासी थी। इस व्यवस्था में स्मारिकाओं के प्रकाशन जैसे कदम स्थानीय स्तर पर लिए जा सकते थे। इसके कारण भाषायी केंद्र पहल करने की भावना के साथ करते थे और उनमें  जुड़ाव की भावना भी बनी रहती थी। श्रीकांत जी ने ऐसी तमान चुनौतियों का समाधान करते हुए भारतीय भाषाओं को एक प्लेटफार्म पर लाया और उन्हें राष्ट्रीय स्तर की सूचना प्रवाह का हिस्सा बनाया।
यहां पर उस लक्ष्य को समझना अहुत जरूरी हो जाता है जिसकों केंद्र में रखकर उन्होंने पत्रकारिता और भारतीय भाषाओं को जोडऩे की कोशिश की थी। वह एक प्लेटफार्म पर सभी भारतीय भाषाओं को इसलिए लाना चाहते थे क्योंकि उनकी दृढ़ मान्यता था कि इससे राष्ट्रीय एकता और समाचारीय परिप्रेक्ष्य दोनों समृद्ध होंगे। अभी ओडिशा, आसोम या बंगाल की कोई घटना तभी हमारे ध्यान में आती है, जब वहां पर बहुत कुछ घट चुका होता है। दूसरी तरफ दिल्ली में होने वाली बारिश पूरे दिन की बड़ी खबर बन जाती है। कारण सिर्फ इतना है कि राष्ट्रीय मीडिया की सुदूर इलाकों तक पहुंच नहीं है। यदि कुछ की पहुंच है भी तो परंपरा और भाषा से अनभिज्ञ होने के कारण वह स्थानीय घटनाओं के महत्त्व को ठीक ढंग से नहीं समझ पाता। दिल्ली से उस क्षेत्र विशेष में गया पत्रकार अपने अहं और विशिष्ट दृष्टिकोण के साथ काम करता है, इसलिए यदि वह स्थानीय भावनाओं के संवेग को ठीक ढंग से न नाप सके तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। प्राय: होता भी ऐसा है। अभिव्यक्ति की तीव्रता अनुभूति की तीव्रता पर निर्भर करती है। यदि किसी को स्थानीय तत्वों की अनुभूति ही नहीं हो पाती तो वह उसे अभिव्यक्त करने की जहमत क्यों उठाएगा? और यह एक स्थापित तथ्य है कि अनुभूति की तीव्रता भाषा पर निर्भर करती है। यदि मूल भाषा की समझ नहीं है तो अनुवाद के जरिए पैदा होने वाली समझ और संवेदना, दोनों ही दोयम दर्जे की बनकर रह जाती हैं।
दूसरी तरफ उस समाज को रचने वाले लोग, उसमें बसने वाले लोग, राष्ट्रीय स्तर पर अपनी आवाज का न पहुंचता देख, उसको विकृत ढंग से परोसा जाते हुए देख कुंठित होते हैं और उनमें अलगाव की भावना बढ़ती है। इसके ठीक उलट यदि स्थान विशेष की खबरों को, उन्हीं की शब्दावली का सहारा लेते हुए प्रस्तुत किया जाता है लोग मुख्यधारा से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। विविधि भारतीय भाषाओं को एक प्लटफार्म पर लाने का सकारात्मक असर सूचना प्रवाह पर भी पड़ता है। इसके कारण एक ही खबर को अलग-अलग दृष्टिकोणों से देखने की संंभावना बढ़ जाती है और इसके कारण समाचारों को अधिक सूचना और बेहतर परिप्रेक्ष्य के साथ प्रस्तुत करने की संभावना भी बनती है।
सभी भारतीय भाषाओं को एक प्लेटफार्म पर लाना देश की सेवा करने जैसा था, सत्या की सेवा करने जैसा था और संवाद के नए और वृहद प्लेटफार्म को गढऩे जैसा था। श्रीकांत जी इस बात को बखूबी समझते थे। संभवत: इसी कारण उन्होंने हिंदुस्थाना समाचार का ध्येय वाक्य भी 'सत्य,संवाद,सेवाÓ को बनाया था।
सभी भारतीय भाषाओं को समाचार के एक प्लेटफार्म पर लाने का जो काम श्रीकांत जी ने शुरु किया था, वह अब धरातल पर अपनी उपिस्थति दर्ज कराने लगा है। भारतीय भाषाओं के जरिए समाचारों का समग्र परिप्रेक्ष्य गढऩे और राष्ट्रीय एकता के पुष्ट करने के उनके अभियान में यदि कुछ नए आयाम जोड़े जा सकें तो यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।





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