लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती इसका परिवर्तन की प्रक्रिया के साथ कदमताल करते हुए आगे बढऩा है। लोकतांत्रिक शासनप्रणाली बदलावों के प्रति सजग और संवेदनशील होती है। परिवर्तन को पहचानने और अभिव्यक्त करने में सक्षम होने के कारण यह एक सेफ्टी वाल्व की तरह भी काम करती है, जिसके जरिए लोगों का गुस्सा और गुबार समय-समय पर बाहर निकलता रहता है। इसीलिए लोकतंत्र में हिंसा का स्पेस कम होता है और सत्ता का हस्तांतरण भी शांतिपूर्ण ढंग से संभव हो पाता है। यह प्रणाली समय-समय पर समकालिक बदलावों के अनुरूप मुद्दों और मुहावरों को भी गढ़ती है।
हाल ही में,हिमाचल प्रदेश और गुजरात में हुए चुनाव सत्ता परिवर्तन की प्रक्रिया तक सीमित नहीं हैं। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में, इन चुनावों का महत्व कुछ नए लक्षणों के कारण भी है। इस चुनाव ने राजनीतिक गलियारे को कुछ नए मुद्दे और मुहावरे दिए हैं। यह मुद्दे और मुहावरे इस बात की तरफ संकेत करते हैं कि भारतीय राजनीति नए चरण में प्रवेश कर चुकी हैं।
इस चुनाव को सबसे रोचक मुहावरा दिया गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने। उनसे जब कुछ पत्रकारों ने पूछा कि आप पिछले 11 सालों से सत्ता में हैं,क्या आपको सत्ता विरोधी लहर अथवा एंटी-इंकम्बेंसी से डर नहीं लगता। मोदी ने इसका बड़ा रोचक उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि एंटी-इंकम्बेंसी अब गुजरे जमाने की बात हो चुकी है। राजनीतिक पंडितों के विश्लेषण का यह हथियार गुजरात में काम नहीं करेगा। गुजरात में इस बार सत्ता के पक्ष में लहर अर्थात प्रो-इंकम्बेंसी है। मोदी के द्वारा दिया गया यह नया मुहावरा जल्द ही राजनीतिक विश£ेषकों की शब्दावली में शामिल हो गया। चुनाव परिणाम आने के बाद बहुत राजनीतिक पंडित इस बात कि चर्चा करते सुने गए कि कैसे दिल्ली,ओडीशा और असम में प्रो-इंकम्बेंसी काम कर रही है।
मोदी का 3 डी प्रचार अभियान भी इस चुनाव के जरिए भारतीय राजनीति को दी गई एक नई देन है। इस तकनीक को अस्तित्व में आए ता लम्बा अरसा हो गया है लेकिन राजनीतिक क्षेत्र में पहली बार इसका उपयोग गुजरात चुनावों के समय हुआ।
हिमाचली परिप्रेक्ष्य में देखें तो यहां पहली बार चुनाव अभियान में रिपीट जैसे पारंपरिक शब्द के साथ डिलीट जैसे सायबर शब्द का भी इस्तेमाल हुआ । चुनाव की पूरी अवधि के दौरान आम आदमी की चर्चा भी मिशन रिपीट और मिशन डिलीट के चहुंओर चक्कर काटती रही। चुनावों के परिणाम आने के बाद अधिकांश समाचार पत्रों की लीड स्टोरी की हेडिंग में रिपीट और डिलीट शब्द ही छाए रहे।
इन चुनावों का महत्व मुहावरों से अधिक मुद्दों के लिहाज से है। हिमाचल प्रदेश और गुजरात दोनों में पहली बार चुनाव विशुद्ध रूप से विकास के नाम पर लड़े गए। गुजरात के चुनाव में तो आंकड़ेबाजी अपने चरमसीमा पर पहुंच गई थी। टेलिविजन पर होने वाली चुनावी चर्चाओं को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे हम अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनावों की चर्चा सुन रहे हैं। कोई यह बताने में जुटा था कि गुजरात में औद्योगिक और कृषि विकास दर क्या है तो कोई गुजरात मे एनीमिक महिलाओं और कुपोषित बच्चों का आंकड़ा प्रस्तुत कर रहा था। देखने में तो यह साधारण बात लगती है लेकिन यदि हम तमिलनाडु,उत्तर प्रदेश अथवा बिहार के चुनावी मुद्दों पर नजर डालें तो इसका महत्व स्पष्ट हो जाता है। तमिलनाडु में चर्चा इस बात को लेकर थी कि कौन सी पार्टी कितने मुफ्त उपहार दे रही है। उत्तर प्रदेश और बिहार के चुनाव में तो हर चर्चा जाति से शुरू होती है और उसी में समाहित हो जाती है। इसी कारण,तमाम क्षमताओं के बावजूद ये राज्य विकास के पैमाने पर यह राज्य अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। गुजरात के चुनाव में पटेल फैक्टर की बात जरूर की जा रही थी,कई लोग इससे भी आगे जाकर कड़वा पटेल और लेउआ पटेल की भी चर्चा कर रहे थे,लेकिन मूल मुद्दा तो गुजरात का विकास ही था। इसीलिए,इस बार कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह ने मोदी को विकास के मोर्चे पर घेरने की कोशिश की। गुजराती विकास को छलावा बताया। इससे पहले गुजरात चुनाव सांप्रदायिक मुद्दे के आस-पास ही घूमता था। 2007 के चुनावों में सोनिया ने विकास के छलावा होने की बात नहीं कही थी,बल्कि मौता का सौदागर होने की टिप्पणी की थी। इससे साबित होता है कि गुजरात चुनाव मोदी द्वारा गढ़े गए विकास -प्रतिमान के चहुंओर ही लड़े गए।
हिमाचल में भी विकास ही प्रमुख मुद्दा रहा। चुनाव हारने के बाद प्रेम कुमार धूमल ने जो पहली प्रतिक्रिया दी वह प्रमुख मुद्दे की तरफ इशारा करती है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में कोई भी ऐसा घर नहीं है,जो पिछले पांच सालों में सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों से किसी न किसी रूप में लाभान्वित नहीं हुआ हो। फिर भी हमारी पार्टी को अपेक्षित मत नहीं मिले ,तो यह मंथन का विषय है। जाहिर है उनको विकास के कामों के जरिए सत्ता में पुनर्वापसी का भरोसा था।
चुनाव जीतने के बाद मोदी ने कहा कि यह गुजरात के विकास मॉडल की जीत है तो वित्तमंत्री पी.चिदंबरम ने कहा कि हिमाचल और गुजरात में लोगों ने भाजपा के विकास मॉडल को नकार दिया है। यह दोनों टिप्पणियां विकास मॉडल पर केंद्रित थी और इस बात की तरफ संकेत कर रही थीं कि भारतीय राजनीति एक नई और ऊंची कक्षा में प्रवेश कर रही है।
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