सोमवार, 29 सितंबर 2014

जैक्सन का जीवन और सभ्यता के सवाल


 25 जून 2009 को पाॅप संगीत की दुनिया में किवदंती बन माइकल जैक्सन का निधन हो गया था। उनकी जिंदगी की तरह ही उनकी मौत भी रहस्यपूर्ण रही और मीडिया की सुर्खियों का हिस्सा बनी। जैक्सन पाॅप संगीत की दुनिया के बादशाह ही नहीं थे, वे वर्तमान उपभोक्तावादी सभ्यता के लिए ‘आदर्श प्रतीक’ भी थे। बाजारु जीवन दर्शन और मूल्यों पर आधारित वर्तमान सभ्यता के विश्लेषण के लिए, उसकी खूबी एवं खामियों को जानने के लिए जैक्सन के जीवन और उनकी जीवन-शैली को ‘केस स्टडी’ के रुप में चुना जा सकता है।

माइकल जैक्सन को उस जीवन-दर्शन और जीवनशैली का साक्षात उदाहरण माना जा सकता है, जिनको ‘मीडिया-मार्केट नेक्सस’ वैश्वीकरण के नाम पर पूरी दुनिया में आरोपित करने के लिए सतत प्रयत्नशील है। बाजार और संचार द्वारा गढे़ गए तमाम सुख एवं विकास के मानकों को जैक्सन ने अपने जीवन में स्पर्श किया। उन्होंने लोकप्रियता की उन ऊंचाईयों को छुआ, जो किसी के लिए ईष्र्या का विषय बन सकती हैं। विज्ञापनों में ही सम्भव दिखने वाली लोकप्रियता से आगे निकल गए थे जैक्सन। उनकी थिरकन पर झूमने वाले पूरी दुनिया में मिल सकते हैं। एक समय वह अकूत संपत्ति के मालिक थे। संक्षेप में कहें तो माइकल जैक्सन के पास वह सब कुछ था जिसे आज की व्यवस्था एक जीवन की सफलता और सार्थकता के पैमाने के रुप में आम आदमियों के सामने परोसती है।

दरअसल ,मीडिया -मार्केट नेक्सस उत्पादों के संग्रह और उनके प्रदर्शन को आज की जीवनशैली में ‘चरम-मूल्य’ के रुप में स्थापित करने का प्रयास कर रही है।। बाजारु प्राथमिकता में खरीददारी का सबसे ऊपर होना स्वाभाविक भी है। खरीददारी की उत्तेजना पैदा करने के लिए लोगों में दिखावे की संस्कृति रोपी जाती है। जैक्सन की जीवन में खरीददारी और दिखावे का जबरदस्त संयोग देखा जा सकता है। प्रदर्शन प्रभाव पैदा करने के लिए जैक्सन ने अपने पूरे शरीर को प्रयोगशाला बना दिया था। बीसियांे से अधिक बार उन्होंने नाक की सर्जरी करायी थी। उनके लिंग-प्रत्यारोपण के किस्स भी काफी चर्चित रहे । प्रदर्शन प्रभाव पैदा करने के लिए माइकल जैक्सन कितने संसाधनों का प्रयोग करते थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1996 में मुम्बई में हुए शो के लिए जैक्सन का सामान तीन रुसी मालवाहक पोतों के जरिए मुम्बई पहुंचा था। शौक का आलम यह कि उन्होंने अपना एक चिडि़याघर ही बसा डाला। एक द्वीपसमूह की खरीददारी कर डाली। हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि जैक्सन के दिखावे और खरीददारी का संबंध उनकी काली त्वचा और उससे जुड़ी हीनता-ग्रंथि से अधिक है। लेकिन इस तर्क को यह कहकर खारिज किया जा सकता है कि बाजार और संचार के गठजोड़ के बिना कालेपन से जुड़े हीनता के क्षणिक भाव को स्थायी भाव में नहीं बदला जा सकता।

लेकिन क्या वास्तव में जैक्सन एक खुशहाल जीवन जी सके ? क्या जैैक्सन के लोकप्रिय जीवन और लक-दक भरी जीवनशैली के स्याहपक्षों और दुःखद कराह को अनदेखा किया जा सकता है। जैक्सन की दर्दनाक मौत कुछ सवाल छोड़ गई है। ये साधारण सवाल नहीं है। आज की पूरी सभ्यता इन सवालों से जूझ रही है और इनका उत्तर पाने को छटपटा रही है।

जैक्सन की मौत को लेकर जो खबर सामने आई उसके मुताबिक जैक्सन के उपर लगभग 8 हजार करोड़ रुपए का कर्ज था। इस कर्ज ने ही जैक्सन का   ‘कमबैक कन्सर्ट’ पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य कर दिया। हालांकि उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति उन्हें किसी भी शो की तैयारी की अनुमति नहीं देती थी। जैक्सन की पोस्टमार्टम रिपार्ट के मुताबिक उनका शरीर कंकाल का ढांचा मात्र रह गया था। और उनकी मौत के वक्त उनके आंतो में दर्द निवारक गोलियां ही थीं। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक जैक्सन प्रतिमाह 20 लाख से अधिक रुपए दवाईयों पर व्यय करते थे। उनका स्वास्थ्य इतना बिगड़ चुका था कि उन्हें आॅक्सीजन के टेंटों का सहारा लेना पड़ता था। जैक्सन एल्फा -1 एंटीट्राईप्सिन नामक गंभीर बीमारी से पीडित थे । इस बीमारी में पूरे शरीर में फेफडों को सुरक्षा प्रदान करने वाली प्रोटीनों की संख्या तेजी से घटने लगती है।

सवाल यह है कि एक समय संगीत के क्षेत्र में विश्व के सर्वाधिक अमीर जैक्सन कर्जे के इतने बड़े कुचक्र में कैसे फंस गए। क्या ऐसी जीवनशैली को मान्यता दी जा सकती है, जिसमें चोटी पर बैठा व्यक्ति भी कर्ज के कुचक्र का शिकार हो जाए, भोजन के बजा दर्दनिवारक गोलियों का आहार ले। क्या उस बाजारु नियम को सामाजिक नियम में तब्दील किया जा सकता है, जो अपने कर्ज वसूली के लिए किसी की जान लेने में न हिचके। ये सवाल व्यक्तिगत नहीं हैं, साभ्यतिक हैं। वैश्विक मंदी से लेकर ग्लोबल वार्मिंग तक की ऐसी  समस्त समस्याओं जिनका सामना हमारी सभ्यता कर रही है, का जुड़ाव इन सवालों से है। ऐसा नहीं है कि इन प्रश्नों को जैक्सन को पैदा करने वाली पश्चिमी सभ्यता महसूस नहीं कर रही है। पश्चिमी दुनिया इन प्रश्नों की गम्भीरता और उनके समाधान की अनिवार्यता से वाकिफ है। लेकिन आदिम मानव प्रवृत्तियों के रुपंातरण और उसकी अभिव्यक्ति में सहज तथा सामान्य बोध के समावेश की  कला से वाकिफ न होने के कारण पश्चिम कोई सार्थक समाधान नहीं ढूढ पा रहा है । प्रकृति तथा  समाज के प्रति अपने सीमित दृष्टिकोण के कारण भी पश्चिम के  समाधान ढूंढने का रास्ता और दुर्गम हो जाता है।

आखिरकार इन प्रश्नों का उत्तर भी हमको हमको माइकल जैक्सन के जीवन का आखिरी पड़ाव दे जाता है। जैक्सन अपने जीवन के अंतिम दिनों में उपनिषदों के अद्वैतवाद से अपनी सर्जनात्मक -उर्जा खींचने वाले भारतीय कवि रविन्द्रनाथ टैगोर का अध्ययन कर रहे थे। रविन्द्रनाथ को पढ़कर जैक्सन पर्यावरण के विषय पर कुछ कविताएं लिखने और स्टेज शो करने की योजना बना रहे थे। जलवायु परिवर्तन की भयावह समस्या के प्रति आमजन को जागरुक करने के लिए वह योगदान देना चाहते थे।

आखिर वह कौन सा तत्व है जो माइकल जैक्सन का झुकाव भारत की तरफ कर रहा था? भारतीयता में निहित समग्रता और संतुलन की दृष्टि ही वह तत्व हैं जो जैक्सन का आकर्षित कर रहे थे। इसे पूर्व भी यह तत्व पश्चिमी चिंतकों को आकर्षित करती रही है। मानव प्रकृति की समग्र समझ तथा आदिम प्रवृत्तियों का रुपांतरण कर उनका उध्र्वगमन करने वाला भारतीय जीवनदर्शन एवं जीवनशैली पश्चिमी विचारकों को समय-समय पर आकर्षित करती रही है। भारतीय जीवनदर्शन और जीवनशैली का आधार व्यापक है। वैदिक ऋचाओं की उदात्त अभिव्यक्तियां, औपनिषदिक प्रश्नोत्तर में निहित व्यापक आध्यात्मिक ंिचंतन तथा षड्दर्शन वह मूलतत्व हैं, जिनसे भारतीय जनमानस को जीवनरस मिलता है। समाज सुधारकों और प्रकाण्ड विद्वानों की मनीषा ने इसको अधिक सुगठित बनाए रखने कालप्रवाह के साथ प्रासंगिक बनाए रखने वाले अनेक आयाम जोडे़ हैं। इसके कारण भारतीय जीवनशैली और जीवनदर्शन में सभी मानवीय प्रवृत्तियों को स्वीकार्यता प्रदान की गई है। अर्थ  और काम के प्रति निषेध भाव नहीं है। परंतु इनकी सेवन और अभिव्यक्ति में धर्माधारित संतुलन की बात जरुर कही गयी है।  पश्चिम अभी उपभोग को चरममूल्य मानने वाली जीवनशैली को अपनाए हुए है इसलिए वहां सुख एवं समृद्धि का संतुलन नही सध पा रहा है।

एजेंडा सेट करना मीडिया का काम माना जाता है। दुर्भाग्य से, मीडिया बाजारु मूल्यों को नैतिक मूल्यों के रुप में स्थापित करने के एजेंडे पर काम कर रहा है। बाजारु मूल्यों को नैतिक मूल्यों के रुप में स्थापित करने की प्रक्रिया पूरी दुनिया में एक भीषण सांस्कृतिक संहार को जन्म दे रही है। इसलिए इस प्रक्रिया पर समग्र चिंतन किया जाना मानव और मानवता दोनों के लिए आवश्यक है। चिंतन की यह प्रक्रिया जैक्सन के जरिए शुरु हो सकती है क्योंकि जैक्सन का जीवन और उनकी मौत बाजार के साथ संचार जगत को अपने मूल्यों के प्रति आत्मावलोकन का अवसर प्रदान करती है।

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